भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रारब्ध / पल्लवी मिश्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पल्लवी मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह=इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:07, 8 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

रख सका है कौन यहाँ?
पलों को, क्षणों को रोक कर;
जिन्दगी टिकी हुई है-
महज सूई की नोक पर;
जरा सी सूई हिल गई,
तो जिन्दगी फिसल गई;
गेंद सी लुढ़कती वह
क्षितिज पार निकल गई।
गुजर गया जो ‘कल’ था वह
गुजर रहा जो ‘आज’ है
क्या होगा ‘कल’ किसे पता?
भविष्य एक राज है।
खुदा के आगे पराधीन सब,
हैं प्रारब्ध के अधीन सब,
खिसक जाए न जाने किसके
कदमों तले जमीन कब?