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12:09, 8 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
फिर आया चुनाव का मौसम
फिर छाया दहशत का आलम
कितनी कत्लें, हत्याएँ होंगी?
पर किसको है इस बात का गम?
वोट माँगने आते हैं जब,
बातें खूब बनाते हैं तब,
पर जीत गए जब दाँव-पेंच से
वादे कहाँ निभाते हैं तब?
कोई जीते या कोई हारे,
हम तो रहे वही बेचारे,
वही राशन की लम्बी लाइन,
वही बढ़ी महँगाई के मारे।