"महँगाई बनाम दीपावली / पल्लवी मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
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एक तो महँगाई की मार;
उस पर यह त्योहार?
जाने कैसे कटेगी?
‘दीपावली’ इस बार
क्या कहा?
बोनस और अग्रिम वेतन?
अजी छोड़िए जनाब
नियमित तो मिलना है दुश्वार;
फिर अग्रिम की माँग
करना ही बेकार।
नए कपड़ों के लिए बच्चे
सर पर हैं सवार;
कहते हैं-कम से कम
त्योहारों पर तो इसका
हमको है अधिकार।
हो जाएगी दीवाली
अपनी भी
यादगार और मजेदार
बस ला दीजिएगा हमें
थोड़ी फुलझड़ियाँ और अनार।
दस रुपए की बख्शीश
नौकर और महरी को भी
नहीं है स्वीकार;
कहते हैं-इतना तो आप
देते रहे हर बार
कुछ तो रेट बढ़ाइए
बीबी जी, इस बार।
अब कर्ज भी लें तो किससे?
सभी दोस्त, रिश्तेदार
करते हैं इनकार
कहते हैं-माफ करना
पिछले ही चुकने के
दिखते नहीं आसार;
फिर बार-बार
पैसे माँग कर
दोस्ती और रिश्ते में मत डालिए दरार।
इतना ही नहीं
जले पर नमक छिड़कने जैससा
दे डालते हैं नसीहतें हजार
मसलन-
सन्तोष और सुख का है एक ही आधार
"तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सार।"