"कूणसी सलाह सै तेरी / मेहर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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वार्ता- वह सखी जो रणबीर सैन को समझाती है कि यह बाग जनाना है आप यहां से चले जाओ, इस तालाब के अंदर यहां की राजकुमारी न्हाने के लिए आती है तो एक सखी दूसरी सखी को क्या कहती है सुनिए इस रागनी में-
झूलण चालांगे दोनूं सथ क्यूं खड़ी मुखड़ा फेर कै
कूणसी सलाह सै तेरी।टेक
रंग का बाजा खूब बजा ले आदमी की बेरा ना कद मार कजा ले
सजा ले अपणी दो मोहरां की नाथ, असल कारीगर की घड़ी रै
जुणसी डिब्बे में घरी।
जिन्दगी के लूट लिए सब जहूरे, आनन्द होंगे भर पूरे
तेरे भूरे भूरे हाथ, लगण दे छन कंगण की झड़ी रै
तबीयत राजी हो मेरी।
तरै म्हां मद जवानी का गमर, ले नै हरि नाम नै समर
तेरी पतली कमर गौरा गात, राहण दे चोटी ढूंगे पै पड़ी रै
सिर पै चूंदड़ी हरी।
मेहर सिंह रटै जा हर नै, कूण समझै दुसरा पराऐ घर नै
तेरी आखर नै सै बीर की जात, गहना पहर कै एक घड़ी रै
बणज्या हूर की परी।