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12:38, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

हर एक जगह तुम ही तुम हो
जिधर भी देखूं
जहां भी देखूं
तेरे ही दर्शन मैं पाऊं
पत्तों में हरियाली बनकर
फूलों में कोमलता बनकर
पानी में निर्मलता बनकर
धूप में किरणों की धारा तुम
बदली में तुम वर्षा बनकर
जिधर भी देखूं
जहां भी देखूं
तेरे ही दर्शन मैं पाऊं।