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"आँख भर सागर / निदा नवाज़" के अवतरणों में अंतर

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12:55, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

नींद की गोलियां खाकर
आज भी सोते हें वे लोग
रात की फटी पुरानी चादर ओढ़े
बिखरे सपनों को तलाशते
जहां उनके हाथ आता हे
बिन चाँद तारों का
अंजुरी भर आकाश
और एक सूना-सा
आँख भर सागर
जब वे उतरते हें
दिन के आग उगलते अमाव में
जल जाता हे
उनका आकाश
और सुख जाती हे हर बूंद
उनके सागर की
न ही संभाल सकती हे उन्हें
रात की फटी पुरानी चादर
और न ही
दिन का दहकता अलाव.