भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितना अछा होता / निदा नवाज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=बर्फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:11, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

कितना अच्छा होता
जो हमारे पास
आंसुओं की आग न होकर
जीवन का होता
एक हरा-भरा उपवन
जहां टहलते हिरन
और ख़रगोश
जहां न होती कोई हत्या
न अपहरण और बलात्कार की
कोई बात
जहां माथे पर लिखा धर्म
न बांटता जीवन और मौत
प्यार और नफ़रत
जहां प्यार की भाषा
सरगोशियाँ न होकर
होती एक पुकार
जहां न तलाशते हम
मन-द्वार पर
होने वाली दस्तक
सुनने के लिए
किसी कॉफ़ी हाउस का
अँधेरा कोना
और न अपने प्रियतम की
उंगलियाँ छूने के लिए
तराशना पड़ता
चाय का एक छोटा सा बहाना
कितना अच्छा होता.