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"वह मिलती है / निदा नवाज़" के अवतरणों में अंतर

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13:44, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

(वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-कायनात में रंग)
 
वह मिलती है
अल्ट्रा सोनोग्रफिक स्क्रीन पर
माँ के गर्भ में दुबकी
अंजाने डर से सहमी
एक डाक्टर को हत्यारे के रूप में
देखती हुई

वह मिलती है
स्कूल के आंगन में
मासूम सी मुस्कान
और तितली सी पहचान लिए
भविष्य के छोर की ओर दोड़ती
सामने वाली खाई से बेपरवाह
छोटी-छोटी गोल-गोल
आँखों में
ढेर सारे सपनों को
संजोती हुई

वह मिलती है
चहरे पर इन्द्रधनुषी रंग बिखेरती
दांतों तले ऊँगली दबाती
पूरे ब्रम्हाण्ड को निहारती
अपनी आँखों से
प्यार छलकाती
होंठों के नमक को
पूरे सागर में बांटती हुई

वह मिलती है
झील-ए-डल के बीचों-बीच
कहकहों की कश्ती पर
अपने पानी में लहरें तराशती
कमल तोड़ता
अपने ही आप से बातें करती
मुस्कुराती
झरनों के जल तरंग के बीच
भीगती हुई

वह मिलती है
अपने ही खेत की मेंड पर बैठी
धान की पकी बालियों को
अपने कोमल हाथों से सहलाती
दरांती की धार को महसूस करती
भीतर ही भीतर शर्माती
नजरें झुकाती
यौवन के सारे रंगों में
नहाती हुई

वह मिलती है
क्रैकडाऊन की गई
बस्ती के बीचों-बीच
लोगों के हजूम में
कोतवाल की वासना भरी नज़रों से
अपने आपको बचाती
अपने चेहरे पर उमड आई
प्रवासी भावना को छुपाती हुई

वह मिलई है
अँधेरे रसोई घर के
कड़वे कसैले धुएं को झेलती
मन की भीतरी जेब में
माचिस और मिट्टी के तेल की
सुखद कल्पना संभालती
चूल्हे में तिल-तिल
जलती हुई

वह मिलती है
पत्तझड़ के मौसम में
अपने बूढ़े चिनार की
मटमैली छाँव में
झुर्रियों की गहराई मापती
दु:खों को गिनती
आईने को तोड़ती हुई

वह मिलती है
जीवन-मरुस्थल में टहलती
रेत की सीढ़ियां चढती
कैकटस के ज़िद्दी काँटों से
दामन छुड़ाती
यादों की सीपियाँ समेटती
इच्छाओं के घरोंदे बनाकर
उनको ढहते देखती
रोती बिलखती
अपने ही सूखे आंसुओं में
डूब कर मरती हुई

वह मिलती है
उम्र के सभी पडावौं पर
संसार की सारी सड़कों पर
अपने पदचिन्ह छोड़ती
रूप बदलती
जीवन को एक
सुन्दर और गहरा अर्थ देती हुई.