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"जाणुं सारी बातां नै / मेहर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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मेरा योग ना अधुरा, भगत सुं पुरा के दिखुं सूं जमूरा
जाणुं सारी बातां नै।टेक

तूं सुन्दरादे इसी बात राहण दे, क्यूं तंग करै साधु नै जाण दे,
कितै खाण दे फल पात, म्हारी साधुआं की जात काटां जंगल कै म्हां रात,
क्यूं सतावै सै नाथां नै।
घणी बोलैगी तै मिलैगा शराप, ना तै तू बैठी रहै चुपचाप,
क्यूं पाप करै, सिर दोष धरै, क्यूं ना दूर मरै,
झाड़ै काचे फल पातां नै।
मनै करी बचपन मैं भगती की कार, गुरू का मैं रहा सूं ताबेदार,
वै पार करै बेड़ा, मत कर अलझेड़ा, म्हारा ऊंचा खेड़ा,
दे दिया दाता नै।
मेहर सिंह कह रंग लुटूंगा, ज्ञान गुरु गोरख पै घुटूंगा।
ना टूटूंगा रेले में, आ रहा सूं मेले में, रंग केले में,
भर दिया मेरी माता नै।