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"अश्रु भीगे गीत / विमल राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर

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दर्द के ये अश्रु-भीगे गीत गाता ही रहूँगा
सुई-सी चुभती व्यथा की पीत-वर्णा दूबियों के शीश पर मैं-
हर सुबह इन आँसुओं के घट सजाता ही रहूँगा
गीत गाता ही रहूँगा

रूठ कर उजली हँसी ने
ओढ़ ली काली अमावस
चन्द्र-मुख पर धर हथेली-
श्याम घन की, हँसा पावस
किन्तु, जब तक साथ देगी पीर की सौदामिनी में-
श्याम निशि में भी दिया का पता पाता ही रहूँगा
गीत गाता ही रहूँगा

-12.11.1973