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ऊपर आसमान रऽ छत छै,
नीचें वर्षा तूफानी।
खट-खट-खट दाँत बजै छै
हे भोला औघड़ दानी।

हाय! मचान के नीचे नेमना
वहीं खड़ी बछिया बकरी।
घरनी के गोदी में रघुवा
ऊपर सें गुदड़ी कथरी।

प्रजातंत्र के इहे रूप छै
कहीं महल कहीं ठठरी।
वर्षा सूखा सबसें आजिज
कड़ी धूप, भीषण बदरी।

अरब-खरब सरकार लुटाबै,
यहाँ कहाँ फूटी कौड़ी?
सटल पेट आँखों नैं सुझै
केनाँ करौं दौड़ा-दौड़ी?

लम्बोदर मुखिया हाकिम रऽ
कान बहिर आँखी पथरी।
लगातार वर्षा सें बाबू
सड़ी गेलै पौरकऽ चचरी।

सावन शिव के मास कहै छै
हुनियें देथिन तनियें ध्यान।
बेड़ा पार लगैथिन सबके
दुखिया रऽ केवल भगवान।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2011