"सन्नाटा / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको, | + | {{KKCatKavita}} |
− | फिर चुपके चुपके धाम बता दूँ तुमको | + | <poem> |
− | तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे धीमे | + | तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको, |
− | मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको। | + | फिर चुपके चुपके धाम बता दूँ तुमको |
+ | तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे धीमे | ||
+ | मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको। | ||
− | कुछ लोग भ्रान्तिवश मुझे शान्ति कहते हैं, | + | कुछ लोग भ्रान्तिवश मुझे शान्ति कहते हैं, |
− | निस्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं | + | निस्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं |
− | मैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ | + | मैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ |
− | मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं। | + | मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं। |
− | कभी कभी कुछ मुझमें चल जाता है, | + | कभी कभी कुछ मुझमें चल जाता है, |
− | कभी कभी कुछ मुझमें जल जाता है | + | कभी कभी कुछ मुझमें जल जाता है |
− | जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो, | + | जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो, |
− | वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है। | + | वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है। |
− | मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ, | + | मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ, |
− | मैं शान्त बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ | + | मैं शान्त बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ |
− | यह सर सर यह खड़ खड़ सब मेरी है | + | यह सर सर यह खड़ खड़ सब मेरी है |
− | है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ। | + | है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ। |
− | मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना, | + | मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना, |
− | जहाँ घास उगा रहता है ऊना-ऊना | + | जहाँ घास उगा रहता है ऊना-ऊना |
− | और झाड़ कुछ इमली के, पीपल के | + | और झाड़ कुछ इमली के, पीपल के |
− | अंधकार जिनसे होता है दूना। | + | अंधकार जिनसे होता है दूना। |
− | तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ, | + | तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ, |
− | तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ | + | तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ |
− | मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ | + | मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ |
− | मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ। | + | मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ। |
− | हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर, | + | हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर, |
− | नीचे तलघर में या समतल पर, भू पर | + | नीचे तलघर में या समतल पर, भू पर |
− | कुछ जन श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है, | + | कुछ जन श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है, |
− | जो मुझे भयानक कर देती है छू कर। | + | जो मुझे भयानक कर देती है छू कर। |
− | तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है, | + | तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है, |
− | पर खास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है | + | पर खास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है |
− | बस एक बात है, वह केवल ऐसी है, | + | बस एक बात है, वह केवल ऐसी है, |
− | कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं। | + | कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं। |
− | यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी, | + | यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी, |
− | इतिहास बताता उसकी नहीं कहानी | + | इतिहास बताता उसकी नहीं कहानी |
− | वह किसी एक पागल पर जान दिये थी, | + | वह किसी एक पागल पर जान दिये थी, |
− | थी उसकी केवल एक यही नादानी! | + | थी उसकी केवल एक यही नादानी! |
− | यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है, | + | यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है, |
− | यह घाट नदी का, अब जो फूट गया है | + | यह घाट नदी का, अब जो फूट गया है |
− | वह यहाँ बैठकर रोज रोज गाता था, | + | वह यहाँ बैठकर रोज रोज गाता था, |
− | अब यहाँ बैठना उसका छूट गया है। | + | अब यहाँ बैठना उसका छूट गया है। |
− | शाम हुए रानी खिड़की पर आती, | + | शाम हुए रानी खिड़की पर आती, |
− | थी पागल के गीतों को वह दुहराती | + | थी पागल के गीतों को वह दुहराती |
− | तब पागल आता और बजाता बंसी, | + | तब पागल आता और बजाता बंसी, |
− | रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती। | + | रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती। |
− | किसी एक दिन राजा ने यह देखा, | + | किसी एक दिन राजा ने यह देखा, |
− | खिंच गयी हृदय पर उसके दुख की रेखा | + | खिंच गयी हृदय पर उसके दुख की रेखा |
− | यह भरा क्रोध में आया और रानी से, | + | यह भरा क्रोध में आया और रानी से, |
− | उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा। | + | उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा। |
− | रानी बोली पागल को जरा बुला दो, | + | रानी बोली पागल को जरा बुला दो, |
− | मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो | + | मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो |
− | मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा, | + | मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा, |
− | बंसी बजवा कर मुझको जरा सुला दो। | + | बंसी बजवा कर मुझको जरा सुला दो। |
− | वह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था, | + | वह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था, |
− | ऐसे जवाब से उसका मेल नहीं था | + | ऐसे जवाब से उसका मेल नहीं था |
− | रानी ऐसे बोली थी, जैसे उसके | + | रानी ऐसे बोली थी, जैसे उसके |
− | इस बड़े किले में कोई जेल नहीं था। | + | इस बड़े किले में कोई जेल नहीं था। |
− | तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी, | + | तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी, |
− | रानी की कोमल देह यहीं झूली थी | + | रानी की कोमल देह यहीं झूली थी |
− | हाँ, पागल की भी यहीं, यहीं रानी की, | + | हाँ, पागल की भी यहीं, यहीं रानी की, |
− | राजा हँस कर बोला, रानी भूली थी। | + | राजा हँस कर बोला, रानी भूली थी। |
− | किन्तु नहीं फिर राजा ने सुख जाना, | + | किन्तु नहीं फिर राजा ने सुख जाना, |
− | हर जगह गूँजता था पागल का गाना | + | हर जगह गूँजता था पागल का गाना |
− | बीच बीच में, राजा तुम भूले थे, | + | बीच बीच में, राजा तुम भूले थे, |
− | रानी का हँसकर सुन पड़ता था ताना। | + | रानी का हँसकर सुन पड़ता था ताना। |
− | तब और बरस बीते, राजा भी बीते, | + | तब और बरस बीते, राजा भी बीते, |
− | रह गये किले के कमरे कमरे रीते | + | रह गये किले के कमरे कमरे रीते |
− | तब मैं आया, कुछ मेरे साथी आये, | + | तब मैं आया, कुछ मेरे साथी आये, |
− | अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते। | + | अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते। |
− | पर कभी कभी जब पागल आ जाता है, | + | पर कभी कभी जब पागल आ जाता है, |
− | लाता है रानी को, या गा जाता है | + | लाता है रानी को, या गा जाता है |
− | तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगिट पर | + | तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगिट पर |
− | अनजान एक सकता-सा छा जाता है।< | + | अनजान एक सकता-सा छा जाता है। |
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11:38, 12 मार्च 2016 का अवतरण
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको,
फिर चुपके चुपके धाम बता दूँ तुमको
तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे धीमे
मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको।
कुछ लोग भ्रान्तिवश मुझे शान्ति कहते हैं,
निस्तब्ध बताते हैं, कुछ चुप रहते हैं
मैं शांत नहीं निस्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ
मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं।
कभी कभी कुछ मुझमें चल जाता है,
कभी कभी कुछ मुझमें जल जाता है
जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो,
वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है।
मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ,
मैं शान्त बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ
यह सर सर यह खड़ खड़ सब मेरी है
है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ।
मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना,
जहाँ घास उगा रहता है ऊना-ऊना
और झाड़ कुछ इमली के, पीपल के
अंधकार जिनसे होता है दूना।
तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ,
तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ
मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ
मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ।
हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर,
नीचे तलघर में या समतल पर, भू पर
कुछ जन श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है,
जो मुझे भयानक कर देती है छू कर।
तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है,
पर खास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है
बस एक बात है, वह केवल ऐसी है,
कुछ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं।
यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी,
इतिहास बताता उसकी नहीं कहानी
वह किसी एक पागल पर जान दिये थी,
थी उसकी केवल एक यही नादानी!
यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है,
यह घाट नदी का, अब जो फूट गया है
वह यहाँ बैठकर रोज रोज गाता था,
अब यहाँ बैठना उसका छूट गया है।
शाम हुए रानी खिड़की पर आती,
थी पागल के गीतों को वह दुहराती
तब पागल आता और बजाता बंसी,
रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती।
किसी एक दिन राजा ने यह देखा,
खिंच गयी हृदय पर उसके दुख की रेखा
यह भरा क्रोध में आया और रानी से,
उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा।
रानी बोली पागल को जरा बुला दो,
मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो
मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा,
बंसी बजवा कर मुझको जरा सुला दो।
वह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था,
ऐसे जवाब से उसका मेल नहीं था
रानी ऐसे बोली थी, जैसे उसके
इस बड़े किले में कोई जेल नहीं था।
तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी,
रानी की कोमल देह यहीं झूली थी
हाँ, पागल की भी यहीं, यहीं रानी की,
राजा हँस कर बोला, रानी भूली थी।
किन्तु नहीं फिर राजा ने सुख जाना,
हर जगह गूँजता था पागल का गाना
बीच बीच में, राजा तुम भूले थे,
रानी का हँसकर सुन पड़ता था ताना।
तब और बरस बीते, राजा भी बीते,
रह गये किले के कमरे कमरे रीते
तब मैं आया, कुछ मेरे साथी आये,
अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते।
पर कभी कभी जब पागल आ जाता है,
लाता है रानी को, या गा जाता है
तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगिट पर
अनजान एक सकता-सा छा जाता है।