भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नारी / सियाराम प्रहरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम प्रहरी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:14, 9 मई 2016 के समय का अवतरण

हय कहलोॅ गेलोॅ छै
जहाँ नारी के पूजा होय छै
देवता वहाँ बास करै छै
कैन्हें कि

शक्ति दे देवी नारी छिकै
ऐश्वर्य के देवी नारी छिकै
विद्या विवेक के देवी नारी छिकै
नारी जीवन दै छै
पालन करै छै
संहारो के देवी नारिये छिकै
महिषासुर मर्दिनी छिकै

सभ्भे यही कहै छै
मतर कि
है कन्हों विडम्बना छै
नारी जब कोख में रहै छै
तब जान जाबै के डॉेर
जब जनम लै छै
तब परिवार से ठकुरावै के डर
जवानी में
पूरा जमाना के डर
और जो विवाह भेलै
त जलावै के डर
जों माय नैं बनि सकलै
त दुरदराबै के डर

जों माय बनी गेलै
त आँखी आसू से तर
नारी के बस यहेॅ हाल छै
सामने हय एगो बड़ोॅ सबाल छै

पुरूष के लेली
नारी के सौन्दर्य
ओकरो मांसल काया
कजरारो नयन
लचकलो कमर
हय नर लेली नारी कामिनी छै
मृगनयनी छै गजगामिनी छै।
हय सबके अलावा कि अच्छा है
बढ़िया लागलो छै ओकरा
ओकरोॅ छटपटाहट
पुरूष के ओकरोॅ मान सम्मान स्वाभिमान
तनिको नै सोहाय छै
नै चाहै छै जे नारी ओकरोॅ चंगुल
से मुक्त हुएॅ
यें जें बनी जाय
मतर कि
लगाम पुरूष हाथों मैं रहतै
समानता के अधिकार के है लड़ाय
जो नारी लड़ी रहलोॅ छै
ऊ अब देखावा छै, एहिना छै
केहने कि
पुरूष कहाँ चाहै छै
कि नारी ओकरोॅ चंगुल से
मुक्त हुयेॅ।