भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुभरी / कुंदन अमिताभ" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:10, 9 मई 2016 के समय का अवतरण

महा अकाल में भी
जे बचलऽ छै
रग-रग टुटलऽ
मानव मनऽ के आश
वहेॅ छेकै दुभरी
लगै छै
कि जरी गेलै
कि मरी गेलै
कि खतम होय गेलै
धरती में बिलाय गेलै
पर रहै छै जिन्दे
मिलै नै छै तनी टा जऽल
कि लहलहाय जाय छै
दुभरी
मानव मनऽ के आश ऐन्हऽ