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सब कुछ छै हमरा आगू लेकिन, सुख सपना छै
देहोॅ मे ताकत छै काम करै के,
मेह बनी केॅ गरजै के, बरसै के।
सूरज ना धरती के कोना-कातर,
झिलमिल-झिलमिल करी दै के।
दुनिया चाहेॅ जे समझेॅ, सब अपना छै।
सब कुछ छै हमरा आगू लेकिन, सुख सपना छै।
सागर मंथ्न से अगनित रतन निकालौं,
परशुराम के गर्वित धनुष सम्हालौं।
स्यमंतक मणि लेॅ विजन वनोॅ केॅ छानौं
वंशी आरो शंख सहज ही धारौ।
अघट बनावै घटना सच कहना छै।
सब कुछ छै हमरा आगू लेकिन, सुख सपना छै।
दिगभ्रमित शक्ति के पूज अभी बिखरैलोॅ
मरू में भटकी केॅ पयस्विनी भरमैलोॅ।
जामवंत जी, महाबीर केॅ सबकुछ याद दिलावोॅ,
उलटोॅ आय शनीचर, आग लगाबोॅ।
पापोॅ से भरलोॅ लंका केॅ जरना छै,
सब कुछ छै हमरा आगू, लेकिन, सुख सपना छै।