"मौका / अनिल शंकर झा" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल शंकर झा |अनुवादक= |संग्रह=लचक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:58, 11 मई 2016 के समय का अवतरण
कतनै जतन करी पैनें छी कुरसी
बाबु लग हाथ जोड़ी, भैया केॅ सुरती
दिनोॅ केॅ रात कही, राथै केॅ दिन
एक्खौं ने सट्टे दै, पूजा के बिन
आबेॅ दिन फिरलोॅ छै, मक्खन्है केॅ पाथबोॅ
आपनोॅ छै भैंसा, कुल्हड़िहै सें नाथबोॅ।
हमरा हुकुमत में, हमर्है टा बुद्धि छै
हमर्है जुठैला सें, भोजनोॅ के शुद्धि छै
चोरोॅ उचक्का केॅ व्यंजन टा शोभै छै
ज्ञानी सिधक्का लेॅ मुट्टी भर खुद्दी छै
तोहें की जानै छोॅ? तोरा लग पैसा छौं?
ओकरा लग पैसा छै, ओकर्है सें नाथबोॅ।
बीसोॅ के आगू में कुत्ता रं डोली केॅ
मातहत कर्मचारी केॅ मासोॅ रं झोली के
साजी केॅ गहना सें बेटी के डोली केॅ
अपना जमाजोॅ में उच्चोॅ टा बोली केॅ
झुलला अरमानोॅ के खोजी के साजबोॅ
आपनोॅ छै भैंसा कुल्हड़िहै सें नाथबोॅ।
हमरे लिखलका केॅ पढ़बै लेॅ पड़तै
जीते जी मुरती भी गढ़बै लेॅ पड़तै
अपनोॅ गुण-गरिम केॅ, शिल्ला पर लिखी केॅ
मन्दिर आ मश्जिद में मढ़बै लेॅ पड़तै
चिता लेॅ चंदन भी किनिये केॅ राखबोॅ
आपनोॅ छै भैंसा कुल्हड़िहै सें नाथबोॅ।