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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एक घड़ी सुमिरौं शीतल माय, द्वि घड़ी सुमिरौं हे।
दशो घड़ी लियवौं तोहरो नाम हे।
कथी के मनदिरबा शीतल माय, कथी के केवड़िया हे।
कथी घेरलेॅ चारों ओर हे।
पथलेॅ मंदिरवा रे सेवका-चन्दन केवड़िया हे।
रूपेॅ घेरल चारों ओर हे।
दई दुशमनमा शीतल माय, वगलेॅ दवाईयोॅ हे।
रैनी घड़ी होईहै सहाय हे।
कर जोरि विनती हे करौं, अवल भगतिया हे।
लागोॅ मैया बालका के गोहार हे।