"गुरुजी / कैलाश झा ‘किंकर’" के अवतरणों में अंतर
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1.
चाहै सरकार आबै, स्कूल बंद रहै;
जनता के कोप सब, सहै छै गुरुजी।
कभी घर गणना तेॅ, कभी जन गणना में,
कभी पशु गणना में, रहै छै गुरुजी॥
कभी पल्स पोलियो के दवा पिलैबै में;
धरे-घर सगरो ई, बहै छै गुरुजी।
कभी छै इलेक्शन के ड्यूटि में उलझल;
साँचे-साँच सबके ई कहै छै गुरुजी॥
2.
इस्कूल बंद करी, गेहूँ लानेॅ चललै;
शिक्षा के ड्यूटी, बजाबै छै गुरुजी।
बी.ओ.सीओ छथिन कौन ठाम पर;
पूछी-पूछी पतबा, लगावै छै गुरुजी॥
लाठी-सोटा लेने आबै, माय-बाप ओकरऽ;
जेकरऽ नै हाजरी, लगाबै कभी गुरुजी।
गेहूँ बटवाबै में, जेल भेलै ते देखऽ;
जेल में लोर बहाबै छै गुरुजी॥
3.
गिनै छै आकाशऽ के, तरेगन गुरुजी;
गुरुजी के वेतन के नै कोनो ठिकाना।
महीना के महीना, उधारी पै जीयैबाला;
रोजे-रोज करै छै तकादा पर बहाना।
दूधवाला, पेपरवाला, टोकतें रहै छै;
अभिये तकादा करि गेलऽ छै किराना।
नौकरी रहैतों देखऽ केहनऽ छै रहन-सहन;
मुश्किल लागै आबेॅ बच्चौं के पढ़ाना॥
4.
सबके पढ़ाबैवाला, भारतीय गुरुजी केॅ;
लोगें सब भारतीय उलटे पढ़ाय छै।
उचऽ उचऽ अफसर, वृद्ध-वृद्ध गुरुजी केॅ;
जीयै लेली रस्ता, उल्टे बताय छै॥
छोट-छोट काम लागी, रोजे-रोज काटै चक्कर;
ऑफिस बेदर्दी तेॅ बड़का कसाय छै।
नौकर बुझै छै, राजा परजा बुझै छै जेना;
गुरुवे सँ जनम-जनम के लड़ाय छै॥
5.
टुटलै जे नाता, शिष्य गुरु के समाज में;
कोढ़ के कान्हा पर, सब रीत-नीत गेलै।
लूट-पाट रात-दिन होय छै चतुर्दिक;
लागै छै जेना कि कोनो दुर्दिन ऐलै॥
केकरो नै वश में रहै छै आबेॅ भारतीय;
साम-दाम दण्ड भेद धूसरित भेलै।
भनई कैलाश आबेॅ विद्या के देवी;
तोरा देखि-देखि, दुख दुख नै बुझैलै॥