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"आपनोॅ बस्ती / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’" के अवतरणों में अंतर

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23:02, 16 मई 2016 का अवतरण

कविता सुनावै लेली मोॅन जबेॅ फड़कै छै
कविता के नाम्हैं पे लोग कैन्हें भड़कै छै?

पैल्हकोॅ ठो जिनगी में कविता के मान छेलै
‘कवि’ कहलैलां में बड़का सम्मान छेलै
कालिदास, शेक्खपीयर, वर्ड्सवर्थ शेली के
तुलसी औ सूर या कबीरे रङ शान छेलै

तखनी नवरत्नोॅ केॅ जेरा में जोरी केॅ
राजां-महाराजां सिनी कविता पढ़भावै रहै
देशोॅ में आफत रहेॅ या फिन खुशहाली में
कवि केॅ सम्मान दै-दै कविता गढ़भावै रहै

विद्यापति, केशव, रहीम, जायसी आरनी
राजसी सम्मान पावी रस-रस में भीङलै
कवि ‘रसखानोॅ’ भी ब्रजभाषा तान लै केॅ
कृष्ण-भक्ति रसोॅ में ‘बिहारी’ साथें डूबलै

तखनी के लोगें जबेॅ कविता के स्वाद बुझै;
एखनी हौ सुनै में कैन्हें दिल धड़कै छै?

हिन्हौ जयशंकर आरो पंत फिन निराला ने
महादेवी, गुप्तोॅ संग अलखोॅ जगैलकै
बच्चन, नेपाली आरो सुभधौ कुमारी ने भी,
दिनकरोॅ केॅ साथ दै दै हुंकारी भरलकै

मतर थोड़है अन्तरालें अेन्हों की जे करी देलकै?
कविता सुनवैय्या ने देखावै छै लाचारी
कोय कहै छै ‘बादा-बादीं’ कूचमर निकाली देलकै
कोय कहै छै ‘कला’ पर विज्ञाने पड़लै भारी

तुकवन्दी के घेरा टुटथैं, छन्दोॅ के मात्रा ठो हटथैं
अतुकान्त कविता ठो बनलै कवि सिनी रोॅ टाङ
गीत सिनेमां जग्घोॅ लेलकै, रसिकें फिन है बात कहलकै
एक तेॅ शिवजी आपन्हैं बौरोॅ वै पर पीलक भांङ

फिलम्है में कविता जबेॅ गीत बनी कड़कै छै
घर्हौ-दुआरी के लोगवा जबेॅ हड़कै छै
कवि के हुलिहै पर जबेॅ लोग सिनी घड़कै छै
तभै पता लागै छै, लोग कैन्हें भड़कैं छै?