भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"समय कठिन छौं / दिनेश बाबा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=हम्म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:11, 1 जून 2016 के समय का अवतरण
मत बैठोॅ करी मन मंझान
बहुत बड़ोॅ छेकै ई जहान
चलोॅ उठावोॅ गठरी-मोटरी
कहीं खोजी लेॅ ठौर-ठिकान
मत सोचोॅ आराम करै के
अभी उमिर छौं काम करै कै
बनी केॅ उगलोॅ सूरज नांखी
चढ़ले जा ऊँच्चोॅ असमान
करै छै देखोॅ विश्वामित्रें
चटिया सबके जीहुजूरी
सतजुग, द्वापर, त्रेता नैं छै
भूली जा अब वेद-पुरान
सब कुछ लागथौं उल्टा-पुल्टा
होलोॅ छै आबेॅ यही जरूरी
मत सोचोॅ बेसी हेकरा लेॅ
कथिलेॅ करभौ मन हलकान
तोरोॅ जिनगी लगल दाँव पर
खड़ा भी नैं छोॅ आपनोॅ पाँव पर
एक्को सपना होल्हौं नैं पूरा
बनेॅ नैं पारल्हौं चोॅर-मकान
शिक्षा-दीक्षा व्यर्थ होलोॅ छौं
सबठो यहीं अनर्थ होलोॅ छौं
जीयै लेली कुछ तेॅ करभौ
खोली लेॅ एकठो पान-दुकान।