भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सौंसे जनम अकारथ भेलोॅ / दिनेश बाबा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश बाबा |अनुवादक= |संग्रह=हम्म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:17, 1 जून 2016 के समय का अवतरण
सौंसे जनम अकारथ भेलोॅ
आबेॅ मन पछतावै छै
मूढ़मती छिकाँ प्रभु हमरा तेॅ
कुच्छु नैं आवै छै।
सकल चराचर के स्वामी छोॅ
प्रभु रक्षक सबके तोहीं
पापी हम सब करम पापमय
पाप हरणकर्त्ता तोहीं
तोरे शरण में अर्पित मन
कीर्त्तन तोरे गावै छै।
दुखिया सब जन यहाँ पेॅ
के केकरा संग प्यार करै छै
अरबद्धी केॅ लोग परस्पर
दुःखोॅ के वार करै छै
तखनी आरत प्राण होय छै
तोरे गोहरावै छै।
ममता मोहित, मोहजाल में
मूढ़ मानुष मन अंधा छै
जुआ उठाय छै जिनगी के
भारोॅ सें झुकलोॅ कंधा छै
लीलाधर भगवानोॅ के
माया सबकेॅ नचावै छै।
बहुधा ध्यान विरत
सब छल-बल में फंसलोॅ छै
कष्ट सहै छै निज कुकर्म के
फाँसोॅ में कसलोॅ छै
दयासिन्ध तोरे कृपा नें
तभियो सकेॅ बचावै छै।