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"बालिसा नगरी / रामनन्दन 'विकल'" के अवतरणों में अंतर

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22:30, 1 जून 2016 के समय का अवतरण

बौंसी के पुरानॅ नाम
बालिसा नगरी भैया
‘बालिसा’ गंधर्व कन्या
छेली मोरे भइया।

सम्पन्न शालीन छेलै
बालिसा नगरिया हो,
पदुम पुराणें गुन-
गाबै मोरे भइया।

रुप-गुन आगदी, पूरन
धन-धान्य भैया,
बालिसा के अकव
कहानी मोरे भइया।

परकोटा सात आरो
नबे टा गोशाला छेलै
बावन बजार गली
तिरपन मइया।

भद्रासने सोहै शिव
गौरी के सहित भैया
जावाली के आश्रम
विराट मोरे भइया।

एक लाख शिष्य रहै
मंच रंगशाला सब
जिनगी के रस हिल
कोरै मोरे भइया।

संस्कृति के सोत फूटै
आकाश गंगा के नाखीं
बाबड़ी-तालाब अन-
लेख मोरे भइया।

लखदीपा मन्दिरॅ में
एक लाख दीप बरै
घरें-घॅर एके दीप
आब मोरे भइया।

काली पूजा-दिवाली में
जिनगी के सोत वरै
ठियाँ ठियाँ अमल
उदोत मोरे भइया।

आचरण मनुखॅ के
मनुखे निभाबै सभे
प्रेम आरो शान्ति उप-
जाबै मोरे भइया।

समय के प्रवाह आरो
जुगॅ के प्रभाव मानॅ
‘काला पहाड़’ भेलै
महा दुष्ट भइया।

मेटी गेलै सब सुरत
बालिसा नगरिया के
वैभवॅ के नगरी
मसान भेलै भइया।

जेना महाअन्धड़ॅ में
फूल-फॅल-डार-पात
तेजी गाछ बनै सुन-
सान मोरे भइया।

आदमी के खिलखिली
हँसी-खुशी प्रीति-नेह
देखी केॅ जरै छे आद-
मियें मोरे भइया।

आदमीं सँवारै रूप
आदमीं विगाड़ै रूप
आदमियें आदमी
संहारै मोरे भइया।

सोची अतरज लागै
भारीख-पहाड़ होतै
जथा नाम तथा गून
बोलै मोरे भइया।

हल-हल-गम-गम करै
छेलै बगिया जे
औकरा में अगिया
लगाय गेलै भइया।

करूआ पहाड़ ऐलै
अन्धड़-बतास नाखीं
लाख-लाख दियरा
बुताय गेलै भइया।

पुरानॅ बालिसा आब
बऊॅसी रूपॅ में देखॅ
मसूदन धाम छै
विख्यात मोरे भइया।

कहै छै त्रेता में रामैं
थापित करलकै जे
बहेॅ मसूदन आय
बिराजै मोरे भइया।

मन्दार पहाड़ छोड़ी
बौंसी में बिराजै हुनी
एक्के दिन रथेॅ पेॅ
मनार जाय भइया।

घूमी-घामौ मन्दारॅ सें
जे आबै मसूदन लेॅ
सूफल जनम हुवै
मोक्ष पाबै भइया।

राज सिमाना छेलै
मधुसूदन मन्दिर भैया
लक्ष्मीपुर राज आ
मनार राज भइया।

एक राज भूमियाँ के
दोसर रजपूत भैया
दोनों मिली साथैं पूजा
करै मोरे भइया।

नै रहऽलै राज-पाट
नाहीं ठाट-बाट भैया
धाम मधुसूदन
अटल मोरे भइया।

सत जेना अटल; असत
ही बिलाबै भैया
पूजॅ मधु सूदन
गुमान तेजी भइया।

सोना सें जड़लॅ रुप
सोना-हार सजलॅ हो
रजतॅ के छत्र छाया
सोहै मोरे भइया।

दू मंजिला सिंह द्वार
नौवतखाना हो भैया
दोल मठें होली के
बहार मोरे भइया।

चैत शुक्ल नौमी आरो
द्वितीया अखाड़ भैया
सावन पूर्णिमां देखॅ
रूप मोरे भइया।

भादो के अष्टमी राती
जनम उत्सव सोहै
दही कादॅ गिरिद-
मिसान मोरे भइया।

पुरी जगन्नाथ आरो
बौंसीं मसूदन भैया
रथ चढ़ै, जात्रा घमा-
सान मोरे भइया।

नाहॅ पाप हरनी ताल
पूस सँकरातीं भैया
मसूदन पूजी केॅ
निहाल हुवॅ भइया।

ठान्हैं गुरुधाम भैया
लाहिड़ी बाबा के धाम
परम पवित्र तपो-
भूमि मोरे भइया।

जहाँ बसै विश्वनाथ,
सन्याल भूपेन्द्रनाथ
श्यामा चरण गुन
गूँजै मोरे भइया।

बेद-धुनी, शंखधुनी
घंटाधुनी गूँजै भैया
शिव-गौरी-गणेश
मन्दिरें मोरे भइया।

साध साधना रत
अनहद नाद सुनै
षटचक्र छेदी ब्रह्म
देखै मोरे भइया।

धन्य भूमी गुरूधाम
धन्य मसूदन भैया
धन्य भूमि बालिसा
नगरी मोरे भइया।

गाबै छै पुरान-वेद
गून गन भूरी-भूरी
दैत्य-सुर-असुर
गंधर्व मोरे भइया।

सभ्यता-संस्कृति केरॅ
आदिकाल-साखी भूम
बारम्बार माँटी के
प्रणाम करॅ भइया।

छूबी केॅ मनार-पाँव
जनम सुफल करॅ
जिनगी के साध पूरा
करॅ मोरे भइया।