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नूनू हमरऽ बुलतऽ ताय ताय ताय।
सत्तू-रोटी आरो भुंजा बुली बुली खाय॥
घूरा-गरदा में नुनुवाँ लेटैतऽ
रोटी सत्तू खाय क’ हाथीर मोटैतऽ
काठऽ के घोड़बा पर नुनुवाँ चढ़तऽ
दौड़ी-दौड़ी हमरा दिस ऐतऽ भाय।
नूनू हमरऽ बुलतऽ ताय ताय तय॥
काली माय नुनुवाँ क’ जल्दी दौड़ाबऽ
पाँच दिन थान तोरऽ जायक’ नीपी ऐबऽ
जों नुनुवां-बाबू के नोकरी लागथौं
देभौं तोरऽ हम्में पिन्डी बनवाय।
नूनू हमरऽ बुलतऽ ताय ताय ताय॥
उछली बैठ कौवा तों कैन्हें बोलै छें?
नूनू के बाबू आबै या ऐसै उछलं छें?
जों आबी जैतौ नूनूवाँ के बाबू
देबौ तोरा हम्में पहिलऽ मिठाय।
नूनू हमरऽ बुलतऽ ताय ताय ताय॥
बुलतें-बुलतें नूनू थकी गेलऽ
‘प्रेमी’ के मऽन तैयो नैहें अघैलऽ
गिरी जाय नुनुवाँ त’ नैहें अघैलऽ
लेलक अपनऽ छाती लगाय।
नूनू हमरऽ बुलतऽ ताय ताय ताय॥