भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बटोही / परमानंद ‘प्रेमी’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमानंद ‘प्रेमी’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:46, 1 जून 2016 के समय का अवतरण

हे हो बटोही लेल’ जा तों समाद
जैहा सें गेलऽ छै पियबा यहाँ सें
एक्को टा चिठियो नैं भेजै वहाँ से
टप-टप टपक’ आँखि से लोरबा
हरी-धुरी आबै छ’ पियभै के याद।
हे हो बटोही लेल’ जा तों समाद॥
कही दिहौ गाछी तर बैठली गोरिया
टक-टक ताकतें रहै छौं रहिया
सभ्भै घरों में देखौ पहुनमा
बाबू पूछै छै कैन्ह’ रुसलऽ दामाद।
हे हो बटोही लेल’ जा तों समाद॥
सावनें-भदबा के उमड़लि नदिया
कुईयाँ, बान्ध आरो भरलऽ पोखरिया
एके सुनऽ लागै हमरऽ सेजरिया
छटपट करि काटौं दिन-रात।
हे हो बटोही लेल’ जा तों समाद॥
सखि सिनि आबी क’ हरदम कुढ़ाय छै
पियबा साथें घुमि ठिठुवा देखाय छै
कही दीहौ पियबा सें नैं तड़पैतऽ
ऐतै नै आब’ त’ पड़बऽ बीमार।
हे हो बटोही ले ल’ जा तों समाद॥
कहै ‘प्रेमी’ सुनऽ हो बटोही
गोरी के बात राखऽ मनों में गोही
दोनों परानी क जों तों मिलैभौ
मने मन देथौं ढेरी आशीर्वाद।
हे हो बटोही ले ल’ जा तों समाद॥