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केकरोॅ कथा चमेली-बेली।
ई एकान्त में गुमसुम-गुमसुम
के बोलै छै चुपचुप-चुपचुप,
पानी में ज्यों बूंद छतोॅ सें
रही-रही केॅ टुपटुप टुपटुप;
सब बोलै छै एक्के लेॅ बस
कहाँ बसै छै रूप-सहेली?
कैन्हैं हेनोॅ मन बेकल छै
की अरूप रं रूप कँवल छै,
आगू कांही नै छै कुछुवोॅ
पीछू छाया के संबल छै;
एक प्रिया बिन की प्राणे ई
सौंसे जीवन एक पहेली।
ढेंस कथू लेॅ केकरोॅ देवै
की आपनोॅ दुख केॅ सहलैवै
दोनों ओर बराबर आँसू
जन्नें कविता कलम घुमैवै;
दुख काटै छै सूरजोॅ ओतनै
जत्तेॅ हुन्नें रात अकेली।