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"जेकरा मेहनत पर / रामदेव भावुक" के अवतरणों में अंतर

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ऊ मंजिल मे केना कहै छ’ हमरा दिया जराबै ले’
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दसो निशान छै हमरा अंगुरी के, बाबूसाहेब! जै रोटी पर
 
दसो निशान छै हमरा अंगुरी के, बाबूसाहेब! जै रोटी पर
ऊ रोटी पर केना कहै छ’ भुक्खल लोर बहाबै ले’
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ऊ रोटी पर केना कहै छॅ भुक्खल लोर बहाबै ले’
  
 
सिंघ पकड़ि के जे बरदा के, अपने हाथ मरखाह बनैले’
 
सिंघ पकड़ि के जे बरदा के, अपने हाथ मरखाह बनैले’
ऊ बरदा के केना कहै छ’ मालिक नाथ पिन्हाबै ले’
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थाना कोट कचहरी अफसर, जे सरकार निकम्मी भेलै
 
थाना कोट कचहरी अफसर, जे सरकार निकम्मी भेलै

02:32, 8 जून 2016 का अवतरण

दाबि के रखलेॅ जे तरबा तर, जिनगी भरि मन बहलाबै ले’
बाबूसाहेब केना कहै छ’, अब ऊ तरबा सहलाबै ले’

सुद्धा के मुँह खूब चटलक’, कल तलक जे कुत्ता तोहर
ऊ कुत्ता के केना कहै छ’, तों हमरा नहलाबै ले’

फाड़लक पीठ पत्नी के, फोड़लक हम्मर सिर तोहर जे लाठी
ऊ लाठी मे केना कहै छ’, हमरा तेल लगाबै ले’

हम्मर फूस के घ’र जराय के, रहि रहलै जे बहुमंजिला में
ऊ मंजिल मे केना कहै छॅ हमरा दिया जराबै ले’

दसो निशान छै हमरा अंगुरी के, बाबूसाहेब! जै रोटी पर
ऊ रोटी पर केना कहै छॅ भुक्खल लोर बहाबै ले’

सिंघ पकड़ि के जे बरदा के, अपने हाथ मरखाह बनैले’
ऊ बरदा के केना कहै छॅ मालिक नाथ पिन्हाबै ले’

थाना कोट कचहरी अफसर, जे सरकार निकम्मी भेलै
ऊ सरकार हमरा नै चाही, ऐसन नाच नचाबै ले’

हमरा मेहनत के रोटी, हमरा चाही भरि देह कपड़ा
इन्साफ कहै छै फूसो के घ’र चाही सिर छुपाबै ले

मिललै नै हक माँगै सें, बाबूसाहेब जग जानै छै
लड़ि के हक लबे, नै जैबै मांग कहीं मनबाबै ले

जेकरा मेहनत पर जग जिन्दा छै, ऊ ताकत के अंदाज लगाब’
चूर-चूर होय जैतै, ऐतै जे ताकत अजमाबै ले’