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रविबाबू ‘गुरुदेव’ कहावै
जों ‘ठाकुर’ ‘टैगोर’ यहाँ,
हुनकोॅ यश के धजा उड़ै छै
संझकी, राती, भोर यहाँ।
पिता छेलै देवेन्द्रनाथ जी
जे जमीन्दार बंगालोॅ केॅ,
रविबाबू बनलै कवि तखनी
छेलै सोलह सालोॅ के।
रविबाबू कविये नै छेलै
कथाकार भी ओतनै ही,
नाटक लिखै के धुन हुनका में,
रहै कूटी केॅ जतनै ही,
शांतिनिकेतन के खोलवैय्या
विश्वभारती कहलावै,
नोबॅल प्राइज पावै वाला
फेनू धरती पर आवै!