भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कानै जंगल / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:46, 9 जून 2016 के समय का अवतरण

कहूँ दिखै नै मंगल-मंगल
कटलोॅ जाय छै जंगल-जंगल।

नदिया-जंगल परती हेन्होॅ
काँटोॅ केरोॅ धरती जेन्होॅ।

नै सुवास, नै औक्सीजन छै
सबके व्याकुल ही जीवन छै।

चिड़िया मरलै गाछी के बिन
कार्बन के उत्सर्जन नागिन।

जंगल कटै कि भाग्य कटै छै
धरती पर सें स्वर्ग हटै छै।

की आवै वाला ही लय छै
जंगल कटवोॅ घोर प्रलय छै।