भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पर्वत / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:49, 9 जून 2016 के समय का अवतरण
की पहाड़, की गिरि, पर्वत
सबके एक्के एक अरथ।
मूधर कहौ कि शैल, अचल
आकि नग ही कहोॅ अटल।
महीधर, भूमिधरो सब एक्के
भले रहेॅ सब हक्के-बक्के।
ई पहाड़ धरती के प्राण
नदी-वृक्ष केॅ दै छै त्राण।
मेघोॅ के घर ई पर्वत
आय वही छै क्षत-विक्षत।
कंकरीट रं शैल लगै
धूल बनी केॅ मैल लगै।
झरना के सूखै छै प्राण
बिन पहाड़ के देतै त्राण।