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"काम नै देतौ गोइयाँ / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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रात अन्हरिया टापे टोइयाँ
भुटकी जाय छै रोइयाँ-रोइयाँ
दादी के मोतियाबिन होलै
सुझै नै ऐंगने, नै कुइयाँ
दू पैसा के खातिर छोटकी
नाच करै छै छम्मक छय्याँ
पढ़े-लिखबे काम टा देतौ
साथ नै देतौ कोनो गोइयाँ
‘भोर-भिहाने’ नै करलोॅ कर
नै तेॅ खैबे चार चौधइयाँ।