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”मन छै जाँव नैहर देखि आँव गाँव-घर
माई-बाप ईगर-दिगर हे सुरुजदेव
मनो नै एको पहर लागै छै कोये कगर
जिया रहे हहर-हहर हे सुरुजदेव
आस में होतै सगर सखियो आठो पहर
चलै मानोॅ नैना के नहर हे सुरुजदेव
झर से भौजी आँचर भिजैते होतै बादर
धुलते होतै नित काजर हे सुरुजदेव!
भैया के गैया हहरी खैते नै होतै हररी
सूखि के भैलोॅ हौतै ठठरी हे सुरुजदेव
राखोॅ नै पिया पकरी मरिये जैभों कहरी
ओठ पर पड़लौं पपरी हे सुरुजदेव
कुछु दिना कैसों करी काटोॅनी आपन घरी
पहुंचभों ऐतें सौन झरी हे सुरुजदेव
लानी द पिया गहरी हरा रंग के चुनरी
मुनरी, विदाय द सुनरी हे सुरुजदेव!“
”सृष्टि से जैतै इंजोर छैतै अन्धकार घोर
होतै केना साँझ अरु भोर हे सामरिया
के दूनों नैना सलोर पोछतै झरतें लोर
राखतै पिंजरा में अगोर हे सामरिया
तोरा बिना एहो मोर करतै केना के सोर
उठै सुनि जियरा खखोर हे सामरिया
तोर चाननी के पोर चुगतै केना चकोर
बात मान्हीं जाहीं नै नैहर हे सामरिया।
”कौऽऽने बीनतै रानी बाँस के चंगेर
बेलिया, कटहल, चम्पा, निमिया, कनेर
संगिया देविया
कौऽऽने लौढ़तै फुलवा रोज?
फुलवा लोढ़िये लोढ़ी भरतै चंगेर
करतै सिंगार संगिया संझिया-सबेर
संगिया देविया,
कौऽऽने मनैतै पियवा रोज?“
”संगिया बौनतों राजा, बांस के चंगेर
बेलिया, कट्हल चम्पा, निमिया, कनेर
हे सुरुजदेव,
संगिया लोढ़तों फुलवा रोज!
फुलवा लोढ़िये लोढ़ी भरतो चंगेर
करतों सिंगार संगिया संझिया-सबेर
हे सुरुजदेव,
संगिया मनैतों पियवा रोज!“
”चार महीना रानी गरमी के दीन
मन तड़पतै पनिया गिरतै जमीन
संगिया देविया,
कौऽऽने डुलैतै बिनियां बोल?“
”चार महीना राजा गरमी के दीन
तलफतौं मनो नै पानी चूतौं जमीन
हे सुरुजदेव
संगिया डोलैतों बिनियां रोज!“
”चार महीना रानी, बरसा के दीन
भावना नै जनमतै चित में नवीन
संगिया देविया,
कौऽऽने छवैतै छनिया बोल?“
”चार महीना राजा, बरसा के दीन
भावना भी उपजतों मन में नबीन
हे सुरुजदेव,
संगिया छवैतों छनिया रोज!“
”चार महीना रानी, जाड़ा के दीन
दिनमां नै चैन रहतै रतियो नै नीन
संगिया देविया,
कौऽऽने जुड़ैतै छतिया बोल?“
”चार महीना राजा जाड़ा के दीन
दिनमां में चैन रहतों रतियो में नीन
हे सुरुजदेव
संगिया जुड़ैतों छतिया रोज!“
संज्ञा पिया लगें सें उठि के
मुसुकैली जरा-सी हवेली में गेली
मानोॅ गोधूलि के चान हुबै
अथवा लता-गुल्म में बेली-चमेली
त्वष्टा-सुता लगलें गढ़कै
निज छाया सरूप अबूझ पहेली
छाया के हाथ में जौंआ यमी-यम
सौंपि के नैहर गेली अकेली।