"पचमो किरण / सवर्णा / तेजनारायण कुशवाहा" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेजनारायण कुशवाहा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:32, 11 जून 2016 के समय का अवतरण
भेद खुलतें गिरलै खाय के पछार
सूर्य! छाया ने झट कैलकै उपचार।
खिस्सा-कहानी में छाया देलकै संतोष
सूर्य-संज्ञा दोन्हू के बताय निरदोष।
छाया रानी के सौंपिये सगठे संसार
घर-वार, लोक-परलोक के प्रभार
दुखिया भे सूर्य तबे अश्वरूप धरि
द्यावा-भूमि निकललै खोजैले वैं घरि।
लोक प्रिय हे युगल देव द्यावाभूमि,
पालै-पोसै छोॅ सभे जीव के चूमि चूमि
भोजन, धन, यश तो दै छोॅ असथान
बोलोॅ-बोलोॅ संज्ञा कहाँ छौं सोहायमान।
हे अपस, प्राणी केरोॅ औषधि महान
ऐल्हौं तोरा दिसि हिन्ने संगिया जवान?
रौद्र पुत्र शक्तिशाली वीर मरुत्गण,
भ्रमणशील छोॅ तोरोॅ सगरे गमन
से संज्ञा पुरातनी सें होलौं नै दरस
रहि-रहि आवै येहो जिया में तरस!
सिंधु, विपास, गंगा, यमुना सरस्वती
सुषोमा, वितस्ता, सतलज दृषद्वती,
परुष्णी, असिक्नी, सरण्यू ऐलोॅ छों हिन्ने
हे सरित, देखलौ छोॅ संज्ञा गेलों किन्ने?
सूर्य मेष राशि ऐले कत्ते लोक भेलें
अश्विनी, भरिणी वो कृत्तिका सें पूछैले।
हमें नै देखलों संज्ञा तीनों कहलकै
आगू बढ़ि सूर्य वृष राशि खोजलकै
रोहिणी वो मृगशिरा ने रवि के हेरि
आदर देलकै। यहाँ होते बढ़ा देरि
हुनका सें बोलि रवि मिथुन में ऐलै
आदरा वो पुनर्बसु सें पूछिये गेलै
पूर्व, असरेस लें पूछै ले कर्कराशि
फरु माघा, पूरवा, उत्तरा सिंह राशि
कन्या आबी हथिया चितरा सें मिललै
भेंटलै नै संज्ञा रबि वाहू सें फिरलै
स्वाति, विशाखो ने देलकै नै पता तुला
ऐलै वृश्चिक में मन के झूलतें झूला
अनुराधा, ज्येष्ठा सँ भेंट करि गोसाँय
मूल, पूर्व-उत्तराषाढ़ा ले धनु आय
मकरोॅ में श्रवण, धनिष्ठा सें मिललै
तहाँ नै पाबिये कुम्भ-प्रदेश चललै
शतभिष्, पूर्वभाद्रपद सँ पूछैले
आपनोॅ हृदय के संतापके कहैले
वाहूँ नै मिललै संज्ञा भै बड़ा उदास
उत्तर भाद्रपद, रेवती रानी आस
मीनमें। नै काहूँ पाबी नै रहलै सोहोॅ
चूवै लोर जेना पड़ै झर बहै बोहोॅ।
जानैं की तों हमरोॅ हृदय के दरद
सजल सरस तोरोॅ भाबुक मरद
तेाहीं सौन्दर्य के देबी ज्योतिर्मयी ऊषा
सरण्यू हे, तोहीं पूषा के बहिन ऊषा
से पूषा अति उदार चराचर स्वामी
हमरो पोषण-शक्ति अजरथगामी
ओकरी बहिन ऊषा सरण्यू सरूप
खोजै छियो रेवती हे, तोरोॅ प्रतिरूप
हे मधोनी, विश्ववार, प्रचेता सुभगा
कहां छे? भेटैनै कैन्हें? ज्योति जगमगा।
याद करि तोरोॅ गुण ई करेजा फाटै
हमरे किरिनियाँ नागिन नाखी काटै
परछाहीं चाननि सागर रंग बढ़ि
प्रलय-लहर-बाढ़ बोरै हर घड़ि।
खोजतें-खोजतें भेलै नयना पियर
पियर-पियर लागै चीज हरिहर।
सून-सून लागौ तिरिया सगठें भुवनमा हे
जेठबा के रतिया पहाड़ नु रेकी।
भाबै नै सतरंगी तितली के गीतवा हे
दरद भमरिया उपजाबै नु रे की।
नीको नै लागै जरा कोइली के बोलिया हे
कुहुकी करेजबा निकालै नु रे की।
गीलोॅ-गीलोॅ हथवा सें बींघै पंचबनवां हे
अंग-अंग पीरबा उठाबै नु रे की
जैसें जरै हे रानी सेमड़-परसवा हे
वैसें जरै छो पियवा तोर नु रे की
स्वाति के बुनिया लेल तड़पै चतकवा हे
वैसें तड़पै नियवा तोर नु रे की
बीजुवन खोजलों-खोजलों कदली बनमा हे
हारल बरद नाकी गिरलो रे की
लागै अन्हार तिरिया सगठे भुवनमा हे
सगठे भुवनमा अन्हार नु रे की।
पोतलोॅ कजरबा सँ पत्थर-पहार लागै
औधि उठै नदिया-किनार नु रे की।
अगे तिरिया, मेटै तों लोक के अन्हार नु रे की
अगे तिरिया, डारै तों किरनी के धार नु रे की।
अगे तिरिया, ऐलों कहां ई पोखर तीर नु रे की।
अगे तिरिया, भमरी गीत में तोरोॅ गीत नु रे की।
चकवा के सगे हेलै चकई चिरैयां हे
हिया पर कौने मारै तीर नु रे की।
विरहा के आग लागी उठलै फफोलवा हे
रहि-रहि टीसै, उठै पीर नु रे की।
वेंत के फूल गिरै पोखरी के पनियां हे
येहो महक सुधिया लानै छै रे की।
आ नी हे रानी आ कदमजुड़ी छहियां हे
तोरोॅ गोसैयां यहां कानै छै रे की।