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"भाषा / वीरू सोनकर" के अवतरणों में अंतर

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08:35, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

वह जीत का स्वांग है
जब मैंने तुमसे किसी दूसरी भाषा में बात की
और जब चिंता की
तो सामने तप रही सड़क के एक हिस्से को
अपनी परछाई से सहला दिया

मैं अपना भय,
बह रही उस नदी से बताता हूँ
नदी भय पी कर
ठन्डे पत्थरो को तट पर पटक
आगे बढ़ जाती है

मैं घर लौट आता हूँ
और दीवारो के कान,
आइनों के मुँह साफ़ करता हूँ

एक्वेरियम में धैर्य उगल रहे नदी से आये
उन नवागंतुकों पत्थरो के स्वागत में
मछलियाँ,
उनका मुँह चाट रही है

असंवाद के संवाद में बदलने के उसी शोर में
फिर हमारी बहस मातृभाषा में थी!