भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माता कहे मेरो पूत सपूत / गँग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गँग |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> मात...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:23, 13 जून 2016 के समय का अवतरण
माता कहे मेरो पूत सपूत
बहिन कहे मेरो सुन्दर भैया
बाप कहे मेरे कुल को है दीपक
लोक लाज मेरी के है रखैया
नारि कहे मेरे प्रानपती हैं
जाकी मैं लेऊँ दिनरात बलैया
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर
गाँठ में जिनकी है ढेरों रुपैया