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"ओ मेरे मोबाइल / प्रदीप शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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03:25, 14 जून 2016 के समय का अवतरण

छूट गया हँसना बतियाना
भूल गया कहकहे लगाना
ओ मेरे मोबाइल !
तूने कैसा गज़ब किया

साथ साथ बैठे हैं सारे
हर कोई स्क्रीन निहारे
सुई फेंक सन्नाटा
आखिर कैसा खींच दिया

होठों होठों में मुस्काएँ
जल्दी जल्दी बटन दबाएँ
कई प्रिया से एक साथ ही
चैटिंग करें पिया

एक नज़र है जली गैस पर
एक नज़र स्क्रीन के ऊपर
अरे अरे वो टाइप कर रहा!
धड़का जाय जिया

ओ मेरे मोबाइल!
तूने कैसा गज़ब किया।