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बाबा!
थोड़ा तो इंतज़ार किया होता
न ज्यादा सही
कम से कम
मेरे पैदा होने तक
मैं देख लेता
तुम्हारा दिव्य उन्नत माथ
तुम्हारा शब्द- शिल्पी हाथ
उँगलियाँ पकड़कर
चलना सिखा दिया होता
यों गोद में उठा लिया होता
तो सँवर जाता मैं
बड़े जल्दबाज निकले बाबा! थोड़ा रुक जाते
कम से कम मेरे पैदा होने तक
तो मैं जान पाता
तुम्हारा दुःख
कि तुम्हारी एक आँख में
तैरता हुआ
कोई लाल भभूका
अंगार
और दूसरी आँख में
पानी की
चमकदार बूंद क्यों है?
तुम्हारा सुमिरन करते हुए
मैं कहीं अन्दर तक
उजास से भर जाता हूँ
बाबा!