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"मोहब्बत / विजय कुमार सप्पत्ति" के अवतरणों में अंतर
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04:28, 15 जून 2016 के समय का अवतरण
तुम अपने हाथो की मेहँदी में
मेरा नाम लिखती थी और
मैं अपनी नज्मो में तुझे पुकारता था जानां;
लेकिन मोहब्बत की बाते अक्सर किताबी होती है
जिनके अक्षर
वक्त की आग में जल जाते है
किस्मत की दरिया में बह जाते है;
तेरे हाथो की मेंहदी से मेरा नाम मिट गया
लेकिन मुझे तेरी मोहब्बत की कसम,
मैं अपने नज्मो से तुझे जाने न दूंगा...
ये मेरी मोहब्बत है जानां!!