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"एक वाकया / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

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10:18, 16 जून 2016 के समय का अवतरण

मुझे आता अगर
सुलझाने का हुनर
तो रात के क्रोशिए पर
अधबुने लटके चाँद को खोलती
और लपेटती सारे कच्चे धागे
मन्नत वाली ऊँगलियों पर
पीर की मजार बाँध लाती पीठ पर
सजदे में सूरज झुकाती

मेरे पास बस एक मुठ्ठी थी
जिसमें बस गिरहें बची
उलझनों का गट्ठर पाँव की पाजेब बन
नाचता है सुर मिलाकर
गिरता हुआ चाँद
जमीन से उठती मैं
एक वाकया है
बीत जाएगा!!!