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"चार / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह" के अवतरणों में अंतर

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चैत हे सखी शीतल मड़पिया, ढौरी पढ़ोढ़ी भक्ता जाय हे
गल्ला कफ्फा बान्ही, करै अरजिया, हुओ सहाय शीतल माय हे।

बैसाख हे सखी डोलै जे बिनिया, हक्कन करै मन मोर हे
केकरा सेॅ कहौं प्रभु, दुखो के बतिया, टुटलो सनेहिया के डोर हे।

जेठ हे सखी पाकर जामुन, आमेॅ तमाल भरलो गाँव हे
पर्वत माटी नदी, सरंग निहारै, बड़ो गाछी तरकन कन छाँव हे।

अषाढ़ हे सखी धनु सतरंगी, उगी जे गेल असमान हे
धिया-पूता उमगै छै, गिनी केॅ रंगवा, हमरो तेॅ मन-मन्झान हे।

सावन हे सखी भैया कन्हैय, द्रौपदी के सुनी चीत्कार हे
रक्षा करो भैया, लाज बचाबो, हारी ठाड़ी छौं जुआसार हे।

भादो हे सखी शिवजी के मानस धीया, मनसा विषहरी पूजाय हे
चाँदो के पूजा पाबी, हरखित पाँचो बहिन, मजूषा साज सजाय हे।

आसिन हे सखी नटवर रास रची, भोला रंगरसिया कॅे रिझाय हे
हरखित मोहन के मुरलिया, पुलकित शिवहर के सड़िया नवनीत मेॅ लिप्त नहाय हे।

कातिक हे सखी औरा नवमी, अन्न बसन कोढ़ा दान हे
औरा गाछी तर खिचड़ी, रिन्ही खाय चलली, कुटिया हवेली मकान हे।

अगहन के सखी हेमन्त ऋतु मेॅ, रामा सीया बिहा दान हे
वही शुभ दिनमा, तुलसी सपनमा, राम चरित मानस वरदान हे।

पूस हे सखी दादी के कोरेॅ लागी, सुतै मेॅ लागै छै सोहान हे
खिस्सा पिहानी, राजा आ रानी, फेकड़ा बुझव्वल बुझान हे।

माघ हे सखी गौना लियौनवा, झाँपी पेटारी ओरियान हे
ठीक सिरीपंचमी, टोला परोसिनी, समधन विदाई के गान हे।

फागुन हे सखी पायल छनन छन, आँखी मेॅ भरलो छै लाज हे
नैनन पिचकारी सें, घायल दुलारी, ठोरो पर ठोर नै छै आज हे।