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"सात / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह" के अवतरणों में अंतर

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चैत हे सखी पोखरी खनाबै, घाट बनाबै चारो दीस हे
चलली नहाबै लेॅ, सातो बहिनिया, आगु-आगु शीतल मैया रीस हे।

बैसाख हे सखी गुज-गुज अन्हरिया, झकेॅ-मकेॅ तारा मन चकोर हे
के हरजइया, मारी केॅ मतिया, रतिया अनोना राखै मोर हे।

जेठ हे सखी अमुआ के डार चढ़ी, बौसली बजाय हरजाय हे
कलसा पर कलसा धरी, नयकी दुल्हिनिया, दुलकली घोॅर चलली जाय हे।

अषाढ़ हे सखी हवा मोरंगी, ले केॅ संदेशा ऐलै आय हे
रोजे-रोजे हुनको, बदलै छै मनवा, कहिया होतै हुनको ‘आय’ हे।

सावन हे सखी हरियर, चुनरिया, पिन्ही चलली बहियार हे
बरसा के बूँदो सेॅ, भरलो गढ़ैया, गोरिया करैछै खेलवाड़ हे।

भादो हे सखी बिचड़ा उखाड़ै, कादो करै हर किसान हे
आगु सिरैतिन पाछु कठैतिन, लुकी-लुकी रोपै रोपनी धान हे।

आसिन हे सखी प्रेम मुरलिया, नभ घन धन बरसाय हे
बाँधी घुँघरुआ, छोड़ी डमरूआ, हरिहर रास रचाय हे।

कातिक हे सखी तुलसा के सेवा, घरे घर माय पितियायन है
कनुवा कन्हैया संग, तुलसी के बिहा करी, थारी तमेड़ी दहेज दान हे।

अगहन हे सखी उख-बिख परनमा, पातन पर आस-अरमान हे
धनमा केॅ कूटी छाँटी, फरचन्तो मनमा, टूटली मड़ैया सोहान हे

पूस हे सखी पूजै जे गोदा अम्मा, विष्णु के प्रिय सखी जान हे
रङ रङ के भोग संग, तुलसी रोॅ पत्ता, पूजी केॅ माँगै वरदान हे।

माघ हे सखी मोहिनी रूप धरी, सुर केॅ करावै मधु पान हे
राहू के भेष-भूषा चिन्ही चनरमा, चक्र सुदर्शन सेॅ दू जान हे।

फागुन हे सखी शिवरात दिनमा, बाबा बृद्धेश्वर धाम हे
अच्छत चन्दनेॅ, जल फूलेॅ बेल पत्रेॅ, पूजबै हम आठो याम हे।