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हहरैलोॅ-घहरैलोॅ ऐलै हेभेॅ देखोॅ भादोॅ मास।
पानी अबरी खूब पड़ै छै, होतै अच्छा अबरी चास॥
भादो के दोसरापक्खोॅ में आबी गेलै परबो तीज।
नयी बिहैली बेटी करतै, यैमें नै खैतै कोय चीज॥
पहिने होतै तीज, पकैते ठेकुआ आरू पिरकिया आज।
पारबती मैया के डलिया में भरत सब साजी-साज॥
आज रात के भोरे-चार बजे होत ओठगनमा-भाय।
दिदियां खैतो दही-चुड़ा रे यह छिकै ‘ओठगनमां भाय!
चार बजे भोरे खैतै, लेकिन रखतै दिन रात उपास।
एक बूंद पानी नै पीतै, तखनी होतै खूब उदास॥
दिन भर सहतै, राती करतै सिवजी के पूजा चित लाय।
सिवजी खुस होतै दिदिया पर, देतै रे, सौभाग्य जगाय॥