भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जितिया / पतझड़ / श्रीउमेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:52, 2 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
हमरा गाछ तर बैठी केॅ बुड़िया दादी झक्खै छै।
”काल्हे छेकै जितिया, खज्जी आनी को नै रक्खै छै॥
गुरुत्मान जीमूतवाहनें के पूजा करबे करत।
पितर अरू-पितरैनी के तेॅ ध्यान सभै धरबे करतै॥
हथिया पेटोॅ के जितिया कहलाबै ‘खरोॅ’ बडोॅ जितिया।
लाठी लगली बुढ़ियौं करतो सबसे बड़ोॅ खरोॅ जितिया॥
झिंगली फुलैला पर करतै परबैतीं रे अबको पारनोॅ।
एक बूंद पानी नै पीती अबकी छै एन्हें धारनोॅ॥
आजो याद करै छी ऊ दिन, छाती फाटी आबै छेॅ।
लोरो कौनें पोछै छेॅ, कौनें हमरा समझावै छेॅ?