भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बछड़ा / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:39, 4 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
बहुत बड़ा है मेरा बछड़ा।
पीता है जल रोज दो घड़ा।
हरी हरी घासें खाता है।
साँझ सवेरे चिल्लाता है।
गैया के संग चरने जाता।
दूध नहीं अब पीने पाता।
पर न जरा है बुरा मानता
मानों कुछ भी नहीं जानता।
साथ हमारे खेला करता।
सिर से हम को ठेला करता।
पर न लड़कियों को है भाता।
शायद उनकी गुड़िया खाता।
मेरा घर उसका भी घर है।
पर न मिला उसको बिस्तर है
है जमीन ही पर नित सोता
नहीं चटाई को भी रोता।
शायद इसे न पढ़ना आता।
इसीलिये कुछ मान न पाता।
पर इसकी परवाह न इसको
मान आन की चाह न इसको।
और बड़ा जब हो जावेगा।
खेत जोतने यह जावेगा।
काम करेगा फिर तन रहते।
वर्षा शीत घाम सब सहते।
जो कुछ हैं हम पीते खाते।
इसकी ही मेहनत से पाते।
है मेरा यह सच्चा साथी।
देकर इसे न लूँगा हाथी।