भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इन्द्रधनुष / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:42, 4 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

इन्द्रधनुष निकला है कैसा।
कभी न देखा होगा ऐसा।
रंग बिरंगा नया निराला,
पीला लाल बैंगनी काला।
हरा और नारंगी नीला,
चोखा चमकदार चटकीला।
इस दुनिया से आसमान पर,
पुल सा चढ़ा हुआ है सुंदर।
है कतार मोरों की आला,
या बहुरंन्गी मोहन माला।
अटक गया है बादल में या,
सूर्यदेव के रथ का पहिया।
पृथ्वी पर छाई हरियाली,
बहती ठंडी हवा निराली
जरा जरा बूंदें झड़ती हैं,
नदियाँ क्या उमड़ी पड़ती हैं।
इन सबसे बढ़ कर इकला,
वह जो इन्द्रधनुष है निकला।
खड़ा स्वर्ग सा दरवाजा,
तू भी लख रे अम्मा, आ जा।