"उनका भविष्य / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
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वह कथ्य की चोरी के इल्ज़ाम में धर लिया गया
जबकि वह रूप पर मोहित था
बच्चा ही था
साफ़ कमरे को और भी साफ़ करते वक़्त
उसकी अनामिका मचल उठी थी
एक अँगूठी की क़ीमती झिलमिल उभर आयी थी फ़र्श पर
तेरह-चौदह
यही रही होगी उम्र
अनामिका अभी पूरा आकार लेने को थी
अँगूठी के लिए पतली थी काफ़ी
और गाँठ में मैल लिये हुए भी
तो भी मचल उठी
जेब में डालने को नहीं, हाथ में डालने की कोशिश कर रहा था
उसकी नीयत में बदनीयती का रंग चढ़ाकर
रँगे हाथों पकड़ लिया गया
और वहाँ पहुँचा दिया गया
जहाँ रँगे हाथों वाली एक बगिया ही चहक रही थी
हमउम्रों की जमात देख एक बार
खिल उठा उसका बुझा चेहरा
उन सबके कंठों में एक स्वाँग रच दिया था समय ने
जैसे उनके कंठों में आवाज़ का भरा जाना
ठेके पर दिया गया कोई काम था
अभी वे उस पूल-आवाज़ के मालिक थे
जो न पहले थी
न आगे रहेगी
उनका मन कभी ज्वार के पूर्व के भीतरी समुद्र-सा हो रहा था
कभी झड़ी के बाद का आकाश-सा
वे फुटकर में रो रहे थे
अगर वे एक साथ रोते होते तो धँस सकती थी ज़मीन
वे थोक में हँस रहे थे
जैसे कमल दल खिल उठता है
वे सब एक ही ताल की तलहटी से आये थे
संगीता के हिसाब से उनका रोना हँसना
दोनों बेसुरे थे
उन्हें सुधारने की आकांक्षा में जो ईश प्रार्थनाएँ गवाई जा रही थीं
वे भी लय के बाहर जा रही थीं
पर उनकी आवाज़
उनकी भींगती मसें और ढेर सारे अधपकेपन मिलकर
एक परती खेत को
नये हल-बछड़ों से जुतने-सा ऑकेस्ट्रा दे रहे थे
लेकिन वे केवल अपने अवगुणें से वाक़िफ़ थे
उन्हें उनका भविष्य समझाने
कुछ विशिष्ट अतिथि पहुँच रहे हैं सफ़ेदी से तर-ब-तर
उँगलियों में झिलमिल अँगूठियाँ पहने
कुछ बड़े अपराध
उन हाथों से होकर मुक्त होना चाह रहे हैं।