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"पुताईवाला / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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04:35, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

एक दीवार के बाद दूसरी
दूसरी के बाद तीसरी
इमारत के बाद इमारत...

दीवारों के काँधों पर हो सकते हैं गुम्बद मीनारें
दीवारों के भीतर हो सकते हैं गर्भगृह

हाथ छोटे हैं तो क्या
सीढ़ियाँ छोटी नहीं

जालों में अटकी प्रार्थनाएँ
दरारों में छुपी मन्त्रणाएँ
ऊपर का गर्दों गु़बार
नीचे का कीचड़
सब साफ़ होना है

हाथ कूची फेरें
और दिमाग़ ख़ाली बैठा रहे
ऐसा तो नहीं

समय के अलग-अलग फाँक तो नहीं
कूची फेरना
और सोचना

एक ऊँचे स्थापत्य के शिखर पर दूसरा कोट करते वक़्त
सोचा उसने नीचे झाँकते हुए
क्या नहीं छू सकती उसकी कूची
नींव...

सारी इमारतों के अपने-अपने स्थापत्य हैं
सारे स्थापत्य होकर गुज़रे हैं उसकी कूची से

सबसे मज़बूत, समतल-चौरस
और सब इमारतों में यकसा पाये जानेवाला आधार ही
उसकी पहुँच के बाहर है...