भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अभिनय-अभिनय / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:38, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

(सीजनबाई को समर्पित)

उठा दुःशासन

दोनों पुतलियों ने भीतर ही भीतर मन्त्रणा की
कि उन्हें ठेठ नग्नता चाहिए

दर्शकों ने मन-ही-मन कसकर बाँध ली साड़ी

वो प्रमाद वो अट्टहास वो विषयकता
खींची जा रही है साड़ी बलिष्ठ कलाइयों की संयुक्तता में
बन-बिगड़ रही है शिखर घाटियाँ भावों की
अनावृत्तता का एक अपूर्व महोत्सव है

तालियों की गड़गड़ाहट है प्रेक्षागृह में

घर तीजन नहीं है ख़ुश
अभिनय में कलाकार को कभी-कभी भीतर से पूरी मदद नहीं मिलती है

फिर उठा भीम

पास की बेसब्र खुले लहराते केशों ने कहा,
उनकी मुक्ति तो बन्धन में है

वो गह्वर गर्जन वो हुंकार वो प्रतिशोध
उठा हवा में दुःशासन को
चीर डालीं टाँगें बली भीम ने
व्रत पूर्ण हुआ छाती शीतल

फिर गूँज है तालियों की प्रेक्षागृह में
गद्गद है तीजनबाई भी

अभिनय में कलाकार को कभी-कभी भीतर से पूऽऽरी मदद मिलती है