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"पैदल चलता आदमी / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
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वृन्तों से पूछा उसने
जड़ों का हाल
फूलों से पूछी
फलों की उम्मीद
टूटी एक उपशाख को
ठुड्डी की तरह उठाया ऊपर
कहा काँटों से
अभी तुम फूल जैसे कोमल हो
कुछ और तपो तुर्शी के लिए...
ये उसके हाथ हिलते हैं कि बतियाते हैं आसपास से
किस लय-संगत में हिल रहा यह सिर
बड़बड़ा रहा कि किसी प्रश्न का उत्तर दे रहा
पागल कह सकते हैं उसे आप
पर फूल कहते हैं
हम बतियाएँगे सबसे पहले उससे
काँटे कहते हैं हम
फूलों में भी रंग कहते हैं हम बतियाएँगे पहले
खु़शबू कहती है हमऽ ऽ हम
कितना अपना होता है पैदल चलता आदमी।