भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पैदल चलता आदमी / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:42, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण


वृन्तों से पूछा उसने
जड़ों का हाल

फूलों से पूछी
फलों की उम्मीद

टूटी एक उपशाख को
ठुड्डी की तरह उठाया ऊपर

कहा काँटों से
अभी तुम फूल जैसे कोमल हो
कुछ और तपो तुर्शी के लिए...

ये उसके हाथ हिलते हैं कि बतियाते हैं आसपास से
किस लय-संगत में हिल रहा यह सिर
बड़बड़ा रहा कि किसी प्रश्न का उत्तर दे रहा

पागल कह सकते हैं उसे आप
पर फूल कहते हैं
हम बतियाएँगे सबसे पहले उससे
काँटे कहते हैं हम

फूलों में भी रंग कहते हैं हम बतियाएँगे पहले
खु़शबू कहती है हमऽ ऽ हम

कितना अपना होता है पैदल चलता आदमी।