भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तमीज़ / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:47, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

जेब से निकली वह क्रीजदार रूमाल
बार-बार मुँह का जूठा पोंछ रही है
मगर गन्दी नहीं हो पा रही है

दिखने लायक जूठा कहीं था भी नहीं

बचा-बचा बीन-बीनकर खा रहा था इतने सलीके से वह
कि जूठा होना ही नहीं था

चेहरा भी उसका दर्पण रहा

उसी में देखा मैंने
जूठा मेरे चेहरे पर लगा थाकृ