भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्राणमती विवाह / प्रेम प्रगास / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=प्रेम प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:54, 19 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

चौपाई:-

तेहि क्षण कुंअरि तहां ले आना। जहां होत सव यज्ञ विधाना॥
विधिवत भौ विवाह सुखदाता। योगहिं योग संयोग विधाता॥
द्विज गण कीन्हो वेद उचारा। वहु युवतीजन मंगलचारा॥
दछिना दान कहत नहि आऊ। आधा सहन भंडार लुटाऊ॥
कोहबर भवन गवन जब कीन्हा। पुरुष विछोह परस्पर चीन्हा॥
कर गहि कुंअरि सेज पर आनी। आदि अंत दुख रेख मिटानी॥

विश्राम:-

तपत बुझानी दुहु तनहिं, सुख सुमेरु मां वास।
धरनीश्वर प्रभु धन्य तुम, वलि वलि धरनीदास॥190॥

चौपाई:-

एक मास को रच्यो अखारा। लोग सकल पाओ जेवनारा॥
आदर भाव सबन को कीन्हा...॥
दिन दिन प्रेम अधिक अनुसरहीं। देश देश के गुनिजन भरहीं॥
जेते जीव स्वयंवर आये। परम प्रसन्न वहुत सुख पाये॥
मास दिवस सम्पूरन भयऊ। ता दिन विदा सकल जन कयऊ॥

विश्राम:-

राजा सब राजी भये, मंगन बाढो मान।
धरती करत सरानो, धनि धनि राजा ध्यान॥191॥

चौपाई:-

दिन दश गयउ सहज परकारा। नेगिन से अस कह्यो भुवारा।
कुंअर कोट एक करहु नियारा। लावहु क्रय अनेक प्रकारा॥
फटिकन पाथर लावहु झारी। जिनके मोल महा अति भारी॥
मनि मोतिन के चून पकाऊ। कनक किवारिन जोरि जडाऊ॥
ठाम ठाम मणि के उंचियारा। विसकर्मा जन चित्र संवारा॥
वारह मास वहै जैह नीरा।...
चतुंदिशि शोभा सुभग वनाये। तापर कंचन कलश धराये॥

विश्राम:-

कोट संपूरन शोभिया, महल वरनि नहि जाय।
धरनीदास कहा कहों, विसकर्मा ललचाय॥192॥